ये बात उस समय की है , जब टाटा मोटर्स ने अपनी पहली पैसेंजर कार इंडिका बाजार में उतारी थी।

image credit :Ratan Tata  twitter

लेकिन इस कार को बाजार से उतना अच्छा रेस्पोंस नहीं मिल पाया, इस वजह से टाटा मोटर्स घाटे में जाने लगी

लोगों ने घाटे को देखते हुए रतन टाटा को इसे बेचने का सुझाव दिया  इसके बाद वो अपनी कंपनी बेचने के लिए अमेरिका की कंपनी फोर्ड के पास गए।

रतन टाटा और फोर्ड कंपनी के मालिक बिल फोर्ड की बैठक में  बिल फोर्ड ने रतन टाटा के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया और कहा कि हम ये कंपनी खरीदकर आप पर एहसान कर रहे हैं।

ये शब्द रतन टाटा के दिल और दिमाग पर छप गए। वे वहां से अपमान का घूंट पीकर इस डील को कैंसल कर चले आए।

 इसके बाद रतन टाटा ने निश्चय कर लिया कि वो अब इस कंपनी को नहीं बेचेंगे और कंपनी को ऊंचाईयों पर पहुंचाने पर काम करेंगे।

इसके लिए उन्होंने एक रिसर्च टीम तैयार की और बाजार का मन टटोला।

इसके बाद की कहानी हम सभी को पता है भारतीय बाजार के साथ-साथ विदेशों में भी टाटा इंडिका ने सफलता की नई ऊंचाइयों को छुआ है।

साल 2008 तक आते-आते फोर्ड कंपनी दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई थी।

रतन टाटा ने फोर्ड की लक्जरी कार लैंड रोवर और जैगुआर बनाने वाली कंपनी जेएलआर को खरीदने का प्रस्ताव रखा, जिसको फोर्ड ने स्वीकार भी कर लिया।

 ये सौदा लगभग 2.3 अरब डॉलर में हुआ। तब बिल फोर्ड ने रतन टाटा से वही बात दोहराई जो उन्होंने रतन टाटा से कही थी, लेकिन इस बार थोड़ा बदलाव था।

उस समय बिल फोर्ड के शब्द थे- आप हमारी कंपनी खरीदकर हम पर बहुत बड़ा एहसान कर रहे हैं।